बच्चों में पढ़ने की आदत कैसे विकसित करें?


बच्चों में पढ़ने की आदत कैसे विकसित करें?
बच्चों में पढ़ने की आदत कैसे विकसित करें?

बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए मां-बाप का भी समझदार और परिपक्व होना आवश्यक होता है। बच्चों को जन्म देना, उनका भरण-पोषण करना और सारी भौतिक जरूरतों को पूरा करना ही ज्यादातर मां-बाप के द्वारा बच्चों के प्रति जिम्मेदारियों के निर्वाह का इतिश्री मान लिया जाता है। ऐसी परिस्थिति में ना तो उनमें अच्छे संस्कार विकसित हो पाते हैं और ना ही पढ़ाई के प्रति रुचि इसलिए मां-बाप को अपने बच्चों के लिए पर्याप्त समय निकालने की आवश्यकता होती है ताकि हुए बच्चों में अच्छे संस्कारों, गुणों और विचारों का बीजारोपण कर सके।

विज्ञान कहता है कि जन्म से लेकर 5 वर्षों तक बच्चों का मस्तिष्क सबसे अधिक विकसित होता है और इस समय बच्चों में सबसे अधिक सीखने की क्षमता होती है जीवन के किसी अन्य उम्रकाल की तुलना में । जैसे-जैसे यह उम्र बढ़ती जाती है, सीखने की क्षमता भी घटती जाती है। अगर कम उम्र में ही हम उनमें पढ़ने के प्रति रुचि विकसित कर ले तो वह पढ़ने से कभी जी नहीं चुराएंगे इसलिए माता-पिता को बचपन से ही उनमें किताबें पढ़ने की आदत डालनी चाहिए। 

 बच्चों में किताब पढ़ने की आदत ना सिर्फ उन्हें किताबों से प्रेम करना सिखाती है बल्कि उनके सोचने समझने की क्षमता विकसित कर उनका मनोरंजन और ज्ञान वर्धन भी करती है तो आइए देखते हैं कि किस प्रकार उनमें पुस्तकों के प्रति रुचि पैदा कर पढ़ने की आदत विकसित कर सकते हैं -
 

जैसी उम्र, वैसी किताबें


 आरंभ में बच्चों को ना तो सही से बोलना आता है और ना ही पढना। ऐसे समय में उन्हें सबसे पहले और सबसे अधिक आवश्यकता इस बात की होती है कि वह किताबों से रूबरू हो और वे किताबें ऐसी आकर्षक हो कि उन्हें किताबें खिलौने की समान ही पसंद आने लगे इसलिए आप उन्हें प्लास्टिक कोटेड सचित्र रंगीन किताबें लाकर दे। जिससे बच्चा आसानी से हिंदी वर्णमाला, अंग्रेजी अल्फाबेट्स , नंबरों और चीजों को देखकर पहचान शुरू कर दें।
 फिर ऐसी किताबें लाकर दे जो जिससे हिंदी और अंग्रेजी अक्षरों का ज्ञान हो और शब्दों से भी परिचय हो सके आप उन्हें पहले शब्दों को फिर वाक्यों को पढ़ना सिखाएं जब बच्चा वाक्यों को पढ़ना सीख जाए तो ऐसे समय में उन्हें कई सचित्र मासिक, अर्धमासिक चंपक जैसी कहानी वाली पत्रिकाओं से अवगत करा सकते हैं।

 जीवन में अनूठापन हर किसी को पसंद है चाहे बच्चे हो जवान हो या बुजुर्ग । जैसे-जैसे उनमें कहानियों को समझने की क्षमता विकसित होती है या परिपक्वता आती है, उसी क्रम में उनके पुस्तकों और पत्रिकाओं में भी बदलाव करना चाहिए। 5 से 12 साल तक के बच्चों को शुरुआत में चंपक फिर नन्हे सम्राट, नन्दन और बालहंस जैसी बाल पत्रिकाएं देनी चाहिए। जैसे ही बच्चा किशोरावस्था (12 से 15 वर्ष) में प्रवेश करें, उन्हें सुमन सौरभ और विज्ञान प्रगति जैसी पत्रिकाओं से अवगत कराएं। ठीक ऐसा ही क्रम पुस्तकों के साथ चलना चाहिए।

 उपहार में दे पुस्तकें

जब इंदिरा गांधी दस वर्ष की थी और मसूरी में थी एवं जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद में थे तो वे इंदिरा में दुनिया वालों के प्रति समझ विकसित करने के लिए इंदिरा को पत्र लिखा करते थे जिसमें वह दुनियाभर की जानकारियां रोचक तरीके से दिया करते थे। बाद में उन पत्रों का संकलन 'पिता के पत्र पुत्री के नाम' से जवाहरलाल नेहरू के द्वारा प्रकाशित किया गया। 
इस व्यस्ततम जीवन में ना तो ज्यादातर मां-बाप को इतना ज्ञान होता है और ना ही समय। ऐसे समय में अच्छी पुस्तकें बच्चों के अच्छे दोस्त और अभिभावक दोनों की भूमिका निभा सकते हैं। वे उन्हें सही गलत का ज्ञान भी करवाते हैं, उनकी कल्पना-शक्ति विकसित करते हैं और जीवन जीने की कला सीखाकर उन्हें भटकाव से दूर ले जाते हैं। आप उनके जन्मदिन पर या उनके किसी उपलब्धि पर कोई अच्छी पुस्तकें भेंट करें। इस परंपरा की पहल आप 'पिता के पत्र पुत्री के नाम' पुस्तक से कर सकते हैं और बाद में उपहारस्वरूप बच्चों को महान व्यक्ति, वैज्ञानिक और महापुरुषों की जीवनी, आत्मकथा या उनकी अन्य पुस्तकें तथा मुंशी प्रेमचंद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित पुस्तकें दे सकते हैं। 
पुस्तक सदृश इस दुनिया में कोई उपहार नहीं है। बाकी सारे उपहार तो क्षणभंगुर होते हैं और उनकी कीमत भी समय के साथ कम होती चली जाती है और अंत में वह उपहार मिट्टी हो जाता हैं परंतु पुस्तक जीवंतता का भाव लेकर आती है और कभी ना नष्ट होने वाला ज्ञान देकर जाती है। संस्कृत में एक श्लोक है - 

न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि !
व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् !!

अर्थात ज्ञान या विद्या ऐसा धन है जिसे न ही कोई चोर चुरा सकता है, न ही राजा छीन सकता है, न ही इसको संभालना मुश्किल है और न ही इसका भाइयो में बंटवारा होता है। यह खर्च करने से बढ़ने वाला धन हमारी विद्या है जो सभी धनो से श्रेष्ठ है। और पुस्तके आपके बच्चों को ऐसे ही अनश्वर ज्ञानधन का स्वामी बना सकती है।

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1 comment

  1. swayam mahaonline.

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