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| घोड़ाकटोरा झील : राजगीर (बिहार) |
हम अपने मोटरसायकिल को पार्किंग में ही लगाकर घोड़ागाड़ी पर सवार हो गए। हम तीन थे - मैं, मेरा ममेरा भाई और तीसरा अनजान राहगीर जिससे हमारी मुलाकात वही हुई थी, हालाँकि बाद में हमारी काफी पटी। वो टूरिज़म के किसी कोर्स के प्रथम वर्ष का छात्र था।
मौसम भी सुहावना था और हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। घोड़ागाड़ी के कुछ दूर जाते-जाते ही हमारे कपड़े भी भींग चुके थे परंतु हमे इसकी कोई चिंता नही थी। हमलोग बस प्रकृति में ही खो से गये थे। लगभग 6.5 km की यात्रा कर हमलोग इस झील के पास पहुँचे। चूँकि ज्यादा समय नही हुआ था,बारिश हो रही थी और आज कोई खास दिन या अवसर नही था इसलिए आज यहाँ पहुंचने वाले हमलोग पहले व्यक्ति थे और शायद इस बात पर हम तीनों गौरवान्वित हो रहे थे।
वहां का अद्भुत नजारा देख मन प्रफुल्लित हो उठा। अहा, क्या दृश्य था। बीच मे झील, उसके किनारे हंसो का झुंड, झील के तीनों तरफ ऊँचे-ऊँचे पर्वत और उन पर वृक्षो का विस्तार, झील के बीच मे स्थापित 70 फीट ऊंची विशाल प्रतिमा और झीलों के किनारों पर लगे हंस के आकार के कई नौकाएं और उन पर लिखा "बढ़ता बिहार", क्या दृश्य था। बादलों को छूते ये पर्वत और अन्य दृश्य किसी भी सांसारिक दुःख और चिंता से मुक्त करने में सक्षम थे। हालाँकि बारिश और तेज हो जाने की वजह से हम नौकाविहार का आनंद तो नही ले पाए परन्तु यहाँ का सुखद अनुभव किसी भी स्वर्गिक आनंद से कम प्रतीत नही हो रहा था। हमने कुछ समय वही व्यतीत किया और इन दृश्यों को अपने मोबाइल के कैमरे में कैद कर लिया। अब बारी थी वापस जाने की। इच्छा तो थी कि वही बस जाए फिर भी इच्छा के विरुद्ध जाकर हमे उसी घोड़ागाड़ी से वापस आना पड़ा। मैं इस यात्रा को जीवन भर नही भूल सकता। अगर आप भी कभी राजगीर जाए तो घोड़ाकटोरा झील तक की यात्रा और वहां पहुँचकर नौकाविहार और प्राकृतिक दृश्यों का आनंद अवश्य ले।
एक और बात, हमेशा यात्राएं करते रहे, घुमक्कड़ी करते रहे, वरना जीवन ठहर जाएगा, मृतप्राय सा हो जाएगा। यात्राएं सिर्फ आनंद ही नही देती, ये हमारे साहस की परीक्षा भी लेती है, नए-नए अनुभवों से अवगत कराती है, ढेरों स्मृतियों का निर्माण करती है, जीवन जीने की कला भी सिखाती है और हमारा ज्ञानवर्धन भी करती है।
ख़्वाजा मीर दर्द ने सच ही कहा है -
सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ
#राजगीर_यात्रा
#घोड़ाकटोरा
(24 जुलाई , 2018 का यात्रा-संस्मरण)
