शायद उसने इतिहास पलटकर नही देखा है। गांधीजी सशरीर भले ही हमारे बीच मौजूद न हो परन्तु उनके सत्य और अहिंसा का पाठ, उनका गांधीदर्शन, उनकी विचारधारा सदैव
गांधीजी के द्वारा किए गए कार्यों को अलग करने के वाबजूद गाँधीदर्शन मनुष्य को समय-समय पर सन्मार्ग दिखाने और इतिहास को पलटने में महत्वपूर्ण और सफल भूमिका निभाया है।
आज हम बात कर रहे है बिहार के 'जेपी बाबू' यानि जयप्रकाश नारायण की। जिन्होंने 1974 में तानाशाही पूर्ण नीतियों, कुशासन व्याप्त भ्रष्टाचार और बाद में आपातकाल के विरोध में 'सम्पूर्ण क्रांति' ला दी थी। यह एक विशाल छात्र आंदोलन था जिसे समाज के अन्य वर्गों का भी सहयोग मिला था। इस आंदोलन की सबसे बड़ी और मौलिक बात यह थी कि यह पूर्णतः गांधीवादी विचारधारा पर आधारित था। जयप्रकाश नारायण पर महात्मा गांधी का प्रभाव होने के कारण उन्होंने इस आंदोलन को अहिंसक बनाए रखा।
7 जून, 1974 को जयप्रकाश नारायण पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में जब विशाल जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे और उनका भाषण अपने समापन की ओर था। तभी वहाँ गोलियों से घायल 12 आंदोलनकारी पहुँचे जिन पर 'इंदिरा ब्रिगेड' नामक संगठन के लोगों द्वारा गोली चलाई गयी थी। लाखों की भीड़ में उत्तेजना फैल चुकी थी। अहिंसा का संकल्प टूटते और हिंसा प्रदर्शन और आगज़नी में देर न लगता परन्तु जयप्रकाश नारायण ने सबको शांत करवाया और उन लाखों लोगों से वादा लिया कि वो हिंसा को अपने ऊपर हावी न होने देंगे और न करेंगे। उन्होंने जब सबको संबोधित करते हुए यह पूछा कि - "वचन देते हो न कि शांत रहोगे" तो प्रदर्शनकारियों सहित आम जनता ने हामी भरी और "हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा" का नारा लगाया और उसे यथार्थ का रूप भी दिया।
यह था जयप्रकाश नारायण का प्रभाव , यह था गाँधीदर्शन और चिन्तन का प्रभाव। यहाँ अहिंसा को ही हथियार बनाया गया भले ही उन्हें कई प्रकार से प्रताड़ित किया गया, इसके कई नेताओं को जेल में भी डाला गया परन्तु आखिर में जीत अहिंसात्मक आंदोलन की होती है। सरकार गिरा दी जाती है और नए भारत और एक नए बिहार के निर्माण की शुरुआत होती है।
ऐसा नही था कि जयप्रकाश नारायण और सम्पूर्ण क्रांति को सिर्फ छात्रों, किसानों और आम जनता का साथ मिला बल्कि इसमें साहित्यकारों और कवियों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और अपनी रचनाओं और कविताओं के माध्यम से , उन्हें मंचों पर सस्वर पाठ करके भी लोगों के बीच क्रांति की अलख जगाई। जिसमें सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, रामवृक्ष बेनीपुरी और जयप्रकाश नारायण के सहयोगी रामगोपाल दीक्षित थे, जिन्होंने क्रांति गीत की रचना की थी।
आइए पढ़ते है -
क्रान्ति गीत
जयप्रकाश का बिगुल बजा तो जाग उठी तरुणाई है,
तिलक लगाने तुम्हे जवानों क्रान्ति द्वार पर आई है.
आज चलेगा कौन देश से भ्रष्टाचार मिटाने को ,
बर्बरता से लोहा लेने,सत्ता से टकराने को.
आज देख लें कौन रचाता मौत के संग सगाई है.
तिलक लगाने तुम्हे जवानों क्रान्ति द्वार पर आई है.
पर्वत की दीवार कभी क्या रोक सकी तूफ़ानों को,
क्या बन्दूकें रोक सकेंगी बढते हुए जवानों को?
चूर – चूर हो गयी शक्ति वह , जो हमसे टकराई है .
तिलक लगाने तुम्हे जवानों क्रान्ति द्वार पर आई है.
लाख़ लाख़ झोपडियों मे तो छाई हुई उदासी है,
सत्ता–सम्पत्ति के बंगलों में हंसती पूरणमासी है.
यह सब अब ना चलने देंगे,हमने कसमें खाई हैं .
तिलक लगाने तुम्हे जवानों क्रान्ति द्वार पर आई है.
सावधान, पद या पैसे से होना है गुमराह नही,
सीने पर गोली खा कर भी निकले मुख से आह नही.
ऐसे वीर शहीदों ने ही देश की लाज बचाई है .
तिलक लगाने तुम्हे जवानों क्रान्ति द्वार पर आई है.
आओ कृषक, श्रमिक, नागरिकों, इंकलाब का नारा दो
कविजन ,शिक्षक , बुद्धिजीवियों अनुभव भरा सहारा दो.
फ़िर देखें हम सत्ता कितनी बर्बर है बौराई है,
तिलक लगाने तुम्हे जवानों क्रान्ति द्वार पर आई है..
– रामगोपाल दीक्षित